जानिए मूंगा पहनने के फायदे और नुकसान

 


मूंगा समुद्र में पायी जानी वाली एक वनस्पति है, जिसे मंगल का रत्न कहा जाता है। जिन लोगों की कुण्डली में मंगल पापी होकर अशुभ फल दे रहा होता है, उसे नियंत्रित करने के लिए मूंगा धारण करना चाहिए। मूंगा एक ऐसा रत्न है, जिसे धारण करने से अनेको प्रकार के लाभ प्राप्त होते है।

मूंगा पहनने के लाभ

  • इस रत्न को सोने/चॉदी या तॉबे में पहनने से बच्चों को नजर नहीं लगती एंव भूत-प्रेत व बाहरी हवा का भय खत्म हो जाता है।
  • मूंगा धारण करने से ईर्ष्या दोष समाप्त होता है, साहस व आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है।
  • मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों को मूंगा पहनने से अत्यन्त लाभ होता है।
  • उदासी व मानसिक अवसाद पर काबू पाने के लिए मूॅगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
  • किसी बच्चे को आलस्य बहुत सता रहा है तो...

    • पुलिस, आर्मी, डाक्टर, प्रापर्टी का काम करने वाले, हथियार निर्माण करने वाले, सर्जन, कम्प्यूटर साप्टवेयर व हार्डवेयर इन्जीनियर आदि लोगों को मूॅगा पहनने से विशेष लाभ होता है।
    • अगर किसी बच्चे को आलस्य बहुत सता रहा है तो उसे मूॅगा पहनाने से उसका आलस्य दूर भाग जाता है।
    • यदि किसी व्यक्ति को रक्त से सम्बन्धित कोई दिक्कत है तो उसे मूंगा पहनने से फायदा मिलता है।
    • मिर्गी तथा पीलिया रोगियों के लिए मूंगा पहनना अत्यन्त हितकारी साबित होता है।

    मेष, वृश्चिक, सिंह, धनु व मीन राशि वाले

    • शुगर रोगी अगर मूंगा धारण करेंगे तो उनका शुगर कंट्रोल में बना रहेगा।
    • जिनके मॉसपशियों में दिक्कत रहती है, उन्हें मूॅगा पहनने से फायदा मिलता है।
    • मेष, वृश्चिक, सिंह, धनु व मीन राशि वाले लोग मूंगा धारण कर सकते है।
    • सूर्य और मंगल आपस में मित्र है। सूर्य का रत्न माणिक्य है, इसलिए मूंगा के साथ माणिक्य पहना जा सकता है।
    • मूंगा रत्न पोखराज और मोती के साथ भी पहना जा सकता है।
    • सिर्फ मंगलवार के दिन

      • मूंगा तर्जनी और अनामिका अंगुली में धारण किया जा सकता है।
      • मूंगा गोमेद, लहसुनिया, हरी व नीलम के साथ पहनना हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
      • मूंगा सिर्फ मंगलवार के दिन चित्रा व मृगशिरा नक्षत्र में ही धारण करना चाहिए।
      • मूंगा धारण करने के पश्चात नानवेज नहीं धारण करना चाहिए और मंगलवार व शनिवार को तो कदापि नानवेज नहीं ग्रहण करना चाहिए।
      • मूंगा धारण करने की विधि

        सोमवार, मंगलवार व बुधवार धूम्रपान व नानवेज कादपि न करें। सोमवार के दिन प्रातःकाल स्नान ध्यान करके कच्चे दूध व गंगाजल में मूंगे को डाल दें। मंगलवार की सुबह 108 बार ‘ऊॅ भौमाय नमः' मन्त्र का जाप करें एंव हनुमान जी के चरणों में रखकर प्रार्थना करें। हे हनुमान जी हम आपकी कृपा से मूंगा रत्न धारण कर रहें है। अतः इसको धारण करने से हमारे मनोरथ पूर्ण हो। तत्पश्चात मूंगा को तर्जनी या अनामिका उंगली में धारण कर लें।

इस रत्न को पहनते ही होने लगते चमत्कार, परेशानियां हो जाती है छूमंतर

 

बहुत से व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं। समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए ज्योतिष शास्त्र में अनेक उपाय भी बताएं गए है। ज्योतिष में वर्णित उपायों में से एक उपाय विभिन्न तरह के रत्नों को धारण करना भी बताया है। वैसे तो अलग-अलग प्रकार के रत्न होते हैं, लेकिन ये एक ऐसा रत्न है जिसे पहनने से तुरंत वाभ दिखाई देने लगते हैं। खास करके इस राशि के जातकों के लिए यह रत्न बहुत लाभप्रद व शुभ माना जाता है।

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मोती रत्न को धारण करने के लाभ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मोती, समुद्र में सीपियों से प्राप्त होने वाला अद्भुत रत्न है जो बड़ी ही दुर्लभता से मिलता है। बनावट से शुद्ध मोती बिल्कुल गोल व रंग में दूध के समान सफ़ेद होता है। मोती रत्न का स्वामी ग्रह चंद्रमा है एवं कर्क राशी के जातकों के लिए यह सबसे ज्यादा लाभकारी माना जाता है। कुंडली में चन्द्र ग्रह से सम्बंधित सभी दोषों में मोती को धारण करना लाभप्रद होता है, चंद्रमा का प्रभाव एक जातक के मस्तिष्क पर सबसे अधिक होता है इसलिए मन को शांत व शीतल बनाये रखने के लिए मोती धारण करना चाहिए।

मोती रत्न को धारण करने की विधि

मोती रत्न को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार के दिन चांदी की अंगूठी में बनाकर सीधे हाथ की सबसे छोटी ऊंगली में पहनना चाहिए। इसे धारण करने से पूर्व दूध-दही-शहद-घी-तुलसी पत्ते आदि से पंचामृत स्नान कराने के बाद गंगाजल साफ कर दूप-दीप व कुमकुम से पूजन करके नीचे दिये मंत्र को 108 बार जपने के बाद ही धारण करना चाहिए। ध्यान रहे की किसी भी रत्न का सकारात्मक प्रभाव तभी तक रहता है जब तक कि उसकी शुद्धता बनी रहती है।

मंत्र

।। ॐ चं चन्द्राय नमः।।

इस अंगुली में ही पहने मोती रत्न

ज्योतिष के अनुसार, जब किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति व उसके प्रभाव के अनुसार मोती के अलग-अलग लाभ मिलते हैं। इसलिए जब कभी भी आप मोती को धारण करने का मन बनाये तो किसी जानकार से सलाह अवश्य लें। मन व शरीर को शांत व शीतल बनाएं रखने के लिए मोती रत्न को धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, गर्भाशय रोग व ह्रदय रोग में मोती धारण करने से लाभ मिलता है। अगर किसी जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह के साथ राहु और केतु के योग बना हो तो मोती रत्न धारण करने से राहू और केतु के बुरे प्रभाव कम होने लगता है।



बाप्पा के इन चमत्कारी मंदिरों के दर्शन मात्र से सभी दुःख होंगे दूर.

 हर साल भगवान गणेश साल के एक निश्चित समय में अपने भक्तों के घर आते हैं, उनसे सेवा-सत्कार आदि लेते हैं और फिर पुनः अपने लोक, कैलाश पर्वत को लौट जाते हैं। यह समय होता है गणेश चतुर्थी। गणेश चतुर्थी का यह पावन त्यौहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। 

ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था। यही वजह है कि इस चतुर्थी को मुख्य गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। कई जगहों पर इसे कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। लोक परंपराओं के अनुसार इस दिन को डण्डा चौथ भी कहा जाता है। 

इस त्यौहार का असली रंग महाराष्ट्र में देखने को मिलता है, जहाँ यह पर्व गणेशोत्सव के तौर पर मनाया जाता है। गणेशोत्सव पूरे दस दोनों तक चलने वाला एक भव्य और खूबसूरत त्यौहार है और यह अनंत चतुर्दशी यानि कि गणेश विसर्जन के दिन पर समाप्त होता है। इस दिन गणेश जी को भव्य रूप से सजा-कर उनकी पूजा की जाती है और फिर ढोल-नगाड़ों के साथ झांकियाँ निकालकर उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि इसके बाद गणेश भगवान पुनः अपने घर, कैलाश पर्वत पर चले जाते हैं।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी का यह त्यौहार 22 अगस्त शनिवार के दिन मनाया गया। अब बात करते हैं गणेश विसर्जन के दिन के शुभ मुहूर्त और कुछ प्रसिद्ध गणपति मंदिरों के बारे में।

गणेश विसर्जन 

गणेश चतुर्थी उत्सव का समापन गणेश विसर्जन से होता है। इस दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। इस अवसर पर, अपने-अपने घरों में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा को लोग जल में प्रवाहित करते हैं। इस उत्सव का असली मज़ा और रौनक महाराष्ट्र में देखने को मिलता है, हालाँकि इस साल कोरोना महामारी के चलते गणेश उत्सव की भव्यता यहाँ भी देखने को नहीं मिलेगी। 

गणेश विसर्जन पूजा मुहूर्त

गणेश विसर्जन : 1 सितंबर (मंगलवार)

गणेश विसर्जन के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 09 बज-कर18 मिनट से 02 बज-कर 01 मिनट
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 03 बज-कर 35 मिनट से 05 बज-कर10 मिनट
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – 08बज-कर10 पी एम से 09 बज-कर 35 मिनट
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 11 बज-कर 01 मिनट से 03 बज-कर 18 मिनट सितम्बर 02
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2020 को 08 बज-कर 48 मिनट
चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2020 को 09 बज-कर 38 मिनट

अब गणेश चतुर्थी के इस पवन मौके पर आइये घर बैठे आइये दर्शन करते हैं भगवान गणेश के कुछ ऐसे चमत्कारी मंदिरों के, जिनके बारे में कहा जाता है कि यहाँ जाने से, या इन मंदिरों में भगवान से कोई भी कामना मांगने से भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

सिद्धिविनायक मंदिर – मुंबई (Siddhi-Vinayak Mandir- Mumbai)

बात भगवान गणेश की होती है तो दिमाग में सबसे पहले सिद्धिविनायक मंदिर का नाम आता है। मुंबई स्थित विघ्नहर्ता का यह भव्य और खूबसूरत मंदिर सालों से भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। कहा जाता है कि जिन मंदिरों में भगवान गणेश की प्रतिमा की सूंड दाईं तरफ होती है वो मूर्तियां सिद्धिपीठ से संबंधित होती हैं और उन मंदिरों को सिद्धिविनायक कहा जाता है।

दगडूशेठ हलवाई मंदिर, पुणे (Dagdusheth Halwai Ganpati Temple, Pune)

पुणे में स्थित श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई मंदिर भी भक्तों के बीच काफी प्रसिद्ध है। हर साल इस मंदिर में लाखों-करोड़ों की संख्या में भक्त आते हैं। इस मंदिर से एक भावुक कर देने वाली कहानी भी जुड़ी है, कहा जाता है कि कई साल पहले अपना इकलौता बेटा प्लेग में खोने के बाद श्रीमंत दगडूशेठ और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई, ने इस गणेश मूर्ती की स्थापना की थी, जो अब भक्तों के लाडले भगवान बन चुके हैं।

गणपतिपुले मंदिर, रत्नागिरी  (Ganpatipule Temple, Ratnagiri)

देश में मौजूद भगवान गणेश के कई भव्य और खूबसूरत मंदिरों में से एक है रत्नागिरी में मौजूद गणपतिपुले मंदिर। इस मंदिर को जो बात सबसे ख़ास बनाती है वो यह कि इस मंदिर में प्रकट हुई भगवान गणेश की प्रतिमा को स्वयंभू की ख्याति दी जाती है। यह मंदिर 400 साल पुराना है। भक्तों के बीच इस मंदिर की काफी मान्यता है।

उच्ची पिल्लायर मंदिर, तिरुचिरापल्ली (Ucchi Pillayar Temple, Tiruchirapalli)

भगवान गणेश के जिस अगले मंदिर की हम बात करने जा रहे हैं वो है तमिलनाडु का प्रसिद्ध  उच्ची पिल्लायार मंदिर जो तिरुचिरापल्ली में त्रिचि नाम की जगह पर रॉक फ़ोर्ट पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ एक बेहद खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर के बारे में सबसे प्रसिद्ध बात यह है कि इस मंदिर की स्थापना का कारण रावण का धर्मनिष्‍ठ भाई विभीषण को माना जाता है। बेहद ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में पहुँचने के लिए लगभग 400 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। 

कनिपकम विनायक मंदिर – चित्तूर (Kanipakam Vinayaka Temple, Chittoor)

आंध्रप्रदेश में मौजूद भगवान गणेश के इस मंदिर को भी चमत्कारी माना जाता है। वजह है इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति जो लगातार अपना आकार बढ़ा रही है। यही वजह है कि इस मंदिर  में अलग-अलग आकार के कवच रखे गए हैं। इस मंदिर के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि यहाँ आने वाले भक्तों के सभी दुःख और पाप भगवान गणेश तुरंत ही हर लेते हैं।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर – जयपुर (Moti Dungri Ganesh Temple, Jaipur)

छोटी काशी कहे जाने वाले जयपुर में भगवान गणेश का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि, यह भगवान गणेश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के बारे में लोगों की असीम श्रद्धा है। इस मंदिर में स्थित भगवान गणेश की मूर्ति को चमत्कारी माना गया है। इतिहास-कार बताते हैं कि इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1731 ई.में लाई गई थी। मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी।

(Kalamassery/Madhur Mahaganapathi Temple, Kerala)

भगवान गणेश का यह बेहद अद्भुत और चमत्कारी मंदिर केरल में स्थित है। स्कंद पुराण के अनुसार, पहले ये भगवान शिव का मंदिर था लेकिन एक बार पुजारी के छोटे से बेटे ने मंदिर की दीवार पर भगवान गणेश की प्रतिमा बना दी थी। कहा जाता है कि मंदिर के गर्भ-गृह की दीवार पर बनाई हुई बच्चे की प्रतिमा धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाने लगी। हर बीतते दिन के साथ वो मोटी और बड़ी होती गई। और तभी से ये मंदिर भगवान गणेश के बेहद खास मंदिरों में से एक बन गया।

वर-सिद्धि विनायागर मंदिर, चेन्नई (Varasiddhi Vinayagar Temple, Chennai)

चेन्नई में बसंत नगर में स्थित यह भगवान गणेश का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में भगवान गणेश के साथ आपको सिद्धि की मूर्ति भी नज़र आएगी। इस मंदिर में एक छोटी मूर्ति भी स्थापित है जिसकी पहले पूजा की जाती थी। प्रत्येक साल गणेश चतुर्थी के दौरान इस मंदिर में पूरे भारत के तीर्थयात्रियों और संगीत प्रेमियों को आकर्षित करने वाले विस्तृत संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस खूबसूरत मंदिर में एक सभागार भी है जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

गणेश टोक मंदिर, गंगटोक (Ganesh Tok Temple, Gangtok)

इन खूबसूरत और चमत्कारी मंदिरों की लिस्ट में हम जिस अगले मंदिर की बात कर रहे हैं वो है गंगटोक में स्थित भगवान गणेश का गणेश टोक मंदिर। यह खूबसूरत मंदिर नाथुला मार्ग पर गंगटोक शहर से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। यहां पर छोटी पहाड़ी पर  प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश जी एक मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि मंदिर को सिक्किम शैली में निर्मित किया गया हैं। मुख्य द्वार से कुछ सीढ़ियां चढ़ने के बाद ही गणेश जी मंदिर में पहुंच जाते हैं।

रणथम्भौर गणेश मंदिर, राजस्थान (Ranthambore Ganesh Temple, Rajasthan)

यूँ तो सभी मंदिर अपने आप में बेहद ख़ास होते हैं, लेकिन राजस्थान में स्थित रणथम्भौर गणेश मंदिर को जो बात एकदम अलग बनाती है वो है यहाँ भेजे जाने वाले ख़त। इस मंदिर को रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। घर में कोई भी शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य भगवान गणेश को निमंत्रण अवश्य भेजा जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं भक्तों को कोई परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरदास भी भक्त यहां पत्र भेजकर भगवान से लगाते है। इसी के चलते इस मंदिर में प्रतिदिन डाक से हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियाँ पहुँचती हैं। कहते है यहां सच्चे मन से मांगी मुराद अवश्य ही पूरी होती है

भगवान गणेश की कृपा सदैव आप पर और आपके परिवार पर बनी रहे। 

आज से महालक्ष्मी का व्रत प्रारम्भ जाने महत्वपूर्ण बातें व्रत की विधि और कथा।

 महा लक्ष्मी आली घरात सोन्याच्या पायानी, भरभराटी घेऊन आली’ 

भक्ति से भरी इन पंक्तियों के साथ आज महाराष्ट्रियन समाज के लाखों घरों में मां लक्ष्मी की पूजा होगी। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से हर वर्ष महाराष्ट्रियन परिवारों में महालक्ष्मी उत्सव का आरंभ होता है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से आज यानी 25 अगस्त, मंगलवार को है। देश के कई हिस्सों में लोग अपनी-अपनी मान्यता के मुताबिक हर्षोल्लास से इस त्योहार को मनाते हैं। कई जगहों पर यह महालक्ष्मी पर्व तीन दिन चलता है तो कई जगह 16 दिन। 

जो लोग 16 दिन का व्रत रखते हैं, वो आखिरी दिन उद्यापन करते हैं। जो लोग 16 दिन का व्रत नहीं रख पाते, वो केवल तीन दिन व्रत रख सकते हैं। इसमें पहले, 8वें और 16वें दिन ये व्रत किया जा सकता है। ध्यान रहे कि इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। हालांकि, दूध, फल, मीठे का सेवन किया जा सकता है।

इस वर्ष महालक्ष्मी पर्व 25 अगस्त यानी आज से शुरु हो रहा है और आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलेगा। शास्त्रों की मानें तो यह बहुत महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी अवश्य करती हैं और इंसान के जीवन में चली आ रही हर प्रकार की समस्याओं का अंत होता है। 

साल 2020 में महालक्ष्मी व्रत

महालक्ष्मी व्रत आरंभशुक्ल अष्टमीभाद्रपद मास25 अगस्त 2020, मंगलवार
महालक्ष्मी व्रत समाप्तिकृष्ण अष्टमी, अश्विन मास10 सितंबर 2020, गुरुवार
  • अष्टमी तिथि प्रारंभ : 12 बज-कर 23 मिनट 36 सेकंड – 25 अगस्त 2020 (मंगलवार)
  • अष्टमी तिथि समाप्त : 10 बज-कर 41 मिनट 20 सेकंड – 26 अगस्त 2020 (बुधवार)                                           

    महालक्ष्मी व्रत विधि

    • माता महालक्ष्मी के व्रत के दिन आपको उठते ही कुछ देर माता का ध्यान करना चाहिये। इसके बाद आपको स्नान आदि से निवृत होकर अपने घर और पूजा स्थल को भी साफ करना चाहिये।
    • इसके बाद महालक्ष्मी व्रत का संकल्प लेना चाहिये और माता से प्रार्थना करनी चाहिये कि, ‘मेरा यह व्रत सफल हो औऱ इसमें कोई विघ्न न आए।’
    • व्रत के संकल्प के लिए इस मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है,

    करिष्यहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा। तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:।।

    • इस मंत्र का अर्थ है कि, ‘हे देवी मैं पूरी मनोयोग से आपके इस महा-व्रत का पालन करुंगा या करुंगी। मेरा ये व्रत बिना किसी बाधा के पूर्ण हो।’ 
    • यदि आपने सोलह दिनों या तीन दिनों का महालक्ष्मी व्रत लिया है तो हर दिन सुबह शाम आपको माता की पूजा करनी चाहिये।
    • व्रत के सोलह दिनों तक घर की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
    • सोलहवें दिन जब व्रत पूरा हो जाए तो उस दिन लाल रंग के वस्त्र से एक मंडप बनाकर उसमें मॉं लक्ष्मी की प्रतिमा रखनी चाहिये।
    • माता के पूजन के लिये फल, फूल, मिठाई, मेवा, कुमकुम आदि पूजा स्थल पर रखें।
    • पूजा के दौरान माता को 16 बार सूत चढ़ाई जानी चाहिये और नीचे दिये गये मंत्र का उच्चारण करना चाहिये। इस मंत्र का सारांश यह है कि, ‘हे माता लक्ष्मी आप मेरे द्वारा लिये गये इस व्रत से संतुष्ट हों।’

    क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा। व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा।।

    • इसके बाद माता लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान करवाएं और षोडशोपचार पूजा करें। यदि आपकी सामर्थ्य है तो इस दिन आपको चार ब्राह्माणों को भोजन अवश्य करवाना चाहिये।
    • महालक्ष्मी के व्रत के दिन एक बात का ध्यान ज़रूर रखना चाहिये कि आप फल, दूध और मिठाई के अलावा कुछ भी न खाएं।।                                                                        

      महालक्ष्मी व्रत कथा

      महालक्ष्मी व्रत से जुड़ी एक कथा हमारे पुराणों में मिलती है। इस कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। एक बार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिये और उससे वरदान मांगने को कहा। भगवान की बात को सुनने के बाद ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास घर में होने की कामना रखी। ब्राह्मण की इच्छा को सुनने के बाद विष्णु भगवान ने कहा कि, तुम्हारे गांव के मंदिर के पास एक महिला उपले थापती है। वही देवी लक्ष्मी हैं उस स्त्री यानि देवी लक्ष्मी को अपने घर आने का आमंत्रण दो। भगवान विष्णु के बताये अनुसार उस ब्राह्मण ने वैसा ही किया। वह उपले थापने वाली स्त्री यानि देवी लक्ष्मी के पास गया और उन्हें घर आने का निमंत्रण दिया। उसकी बातों को सुनकर देवी लक्ष्मी समझ गयीं कि यह काम भगवान विष्णु का है। इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी का व्रत रखो और 16 वें दिन रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य दो। ऐसा करने से तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी। ब्राह्मण ने देवी की बातों को सुनकर विधि-विधान से महालक्ष्मी का व्रत रखा और 16वें दिन लक्ष्मी जी ने अपना वचन निभाया। तब से महालक्ष्मी का व्रत भारत के लोगों द्वारा रखा जाने लगा।